चकिया- नहाय खाय के साथ चार दिवसीय सूर्य आराधना का पर्व 17 से शुरू,लोकपर्व डाला छठ की तैयारियां तेज

संवाददाता कार्तिकेय पाण्डेय

चकिया- भगवान भास्कर की साधना आराधना का लोक पर्व सूर्य षष्ठी (डाला छठ) कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि में मनाया जाता है। तिथि विशेष में महिलाएं व्रत रखकर सायंकाल नदी, तालाब, सरोवर या जलपूरित स्थान में खड़े होकर अस्तचलगामी भगवान सूर्य को अर्घ देती हैं।दीप जलाकर रात्रि पर्यंत जागरण के साथ गीत व कथा के जरिए भगवानपुर की महिमा का बखान किया जाता है।

महापर्व के विधान चार दिन चलते हैं। इसके तहत पहले दिन चतुर्थी तिथि में (इस बार 17 नवंबर को) नहा खाकर संयम भोजन से पर्व का आरंभ होता है। इसे नहाय खाय कहा जाता है। वही पंचमी तिथि में (अबकी 18 अक्टूबर को) खरना की रस्म निभाई जाएगी। इसमें मीठे भात,बखीर या लौकी की खिचड़ी खाई जाती है। षष्ठी 19 नवंबर व्रत के मुख्य तिथि होती है। तिथि विशेष पर गति सायं काल गंगा तट या किसी जल वाले स्थान पर अस्तचलगामी सूर्य को अक देगी। साथ ही घाट पर दीपक जलाएंगी। यहां जागरण का विशेष महत्व है। सप्तमी तिथि 20 नवंबर में प्रातः काल अरुणोदय बेला में उगते सूर्य को रख दिया जाएगा। इसके बाद प्रसाद वितरण कर पारन किया जाएगा।

19 को सूर्यास्त 5.22 बजे,20 को सुबह 6.39 बजे सूर्योदय
षष्ठी तिथि 18 नवंबर को सुबह 9:53 बजे लगेगी। जो 19 नवंबर को प्रातः 7:50 बजे तक रहेगी। पूजा तिथि के कारण इसी दिन छाया कल सूर्य षष्ठी का प्रथम अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन सूर्यास्त शाम 5: 22 बजे पर होगा। इसी समय अस्तचलगामी सूर्य को अक दिया जाएगा। 20 नवंबर की प्रातः 6:39 बजे सूर्योदय होगा। इसी समय उदित सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।

तपस्या परख व्रत
सूर्य षष्ठी व्रत वस्तुतः अत्यंत कठिन व तपस्यापरक माना गया है। माना जाता है कि इस व्रत को करने से स्त्रियां पति पुत्र व धन, ऐश्वर्य आदि से संपन्न होती हैं। तिथि विशेष पर गंगा स्नान, जाप आदि का विशेष महत्व है। सूर्य पूजन व गंगा स्नान ही इस व्रत में मुख्य है। पूजन सामग्री में कनेर का लाल फूल, लाल वस्त्र, गुलाल, धूप दीप आदि विशेष है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *