संवाददाता कार्तिकेय पाण्डेय
घोसी- उपचुनाव के लिए सुबह बजे से काउंटिंग शुरू हो चुकी है। दो चक्रों की काउंटिंग में सपा के उम्मीदवार सुधाकर सिंह भाजपा के उम्मीदवार दारा सिंह चौहान से 1372 मतों से आगे हैं। सपा के सुधाकर मौके पर मौजूद हैं तो भाजपा के दारा सिंह मौके पर नहीं हैं। इस परिणाम का उत्तर प्रदेश में बड़ा प्रभाव पड़ने वाला है ऐसे राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है, पर इस परिणाम से हाल ही में एनडीए गठबंधन का हिस्सा बनी सुभासपा के मुखिया ओमप्रकश राजभर उनके बेटे अरविन्द और अरुण राजभर का भी प्रदेश में सियासी कद और पद भी तय होगा।
मठ में भेजते-भेजते साथ हो लिए राजभर
यूपी की राजनीति के केंद्र माने जाने वाले पूर्वांचल की राजनीति में पिछले कुछ वर्षों से अपनी धमक रखने वाले सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर 5 साल बाद एक बार फिर भाजपा का दामन थाम लिया है। पिछले 5 वर्षों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को वापस मठ में भेजने, प्रधानमंत्री को वापस गुजरात भेजने और अमित शाह पर बयानबाजी के बावजूद सियासी समीकरण को देखते हुए एनडीए ने उन्हें अपने साथ ले लिया है। जब राजभर से पूछा गया कि क्या ये सब बातें आपने जी कहीं थी इन लोगों के बारे में वो क्या थी तो बोले वो राजनीतिक जुमले बाजी थी।
सत्ता का सुख ले गया सत्ता के साथ
राजभर परिवार के भाजपा को समर्थन दिए जाने पर राजभर कम्यूनिटी काफी नाराज और आक्रोशित दिखी। कई राजभर नेताओं ने इसका विरोध किया वाराणसी में कुछ नेताओं ने उनकी तस्वीर पर मला चढ़ाकर भी विरोध किया था। राजभर कम्यूनिटी के साथ ही साथ अन्य विपक्षियों ने भी राजभर पर कटाक्ष किया कि अपने और बेटों के भविष्य के लिए एक बार फिर राजभर वापस एनडीए के पाले में गए हैं।
गाजीपुर से बेटे को लोकसभा का टिकट
कयास लगाए जा रहे हैं कि घोसी बाई इलेक्शन ही राजभर परिवार की अग्नि परीक्षा है। यदि भाजपा यह चुनाव जीतती है और इसमें राजभर वोटों की भागीदारी होती है तो उनके बड़े बेटे को गाजीपुर लोकसभा और उन्हें भी घोसी लोकसभा से टिकट मिल सकता है। इसके अलावा ओमप्रकाश राजभर को कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिल सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो सत्ता में इसी कारण से राजभर गए हैं। ओमप्रकाश राजभर से जब इस बारे में पत्रकारों से सवाल किया तो उन्होंने भी हंसते हुए कहा था कि पहले चुनाव बीत जाने दीजिये।
पब्लिक का क्या ?
राजभर ने 20 मई 2019 को एनडीए गठबंधन छोड़ा था। वजह थी दलित, पिछड़ों, गरीबों का उत्थान और उनका आरक्षण की मांग जिसे पूरा करने के लिए उन्होंने सत्ता पक्ष पर दबाव डाला पर मांग नहीं मानी गयी तो उन्होंने पार्टी से किनारा कर लिया और गठबंधन खत्म कर लिया। इसके बाद कई मंचों से सत्ताधारी दल को उन्होंने जमकर जवाब दिया। राजभर से लेकर दलित सब सुभासपा के साथ आ गया। 2022 विधानसभा चुनाव में सपा से गठबंधन कर ओमप्रकाश ने पूर्वांचल में हुंकार भरी और अपना प्रभाव भी दिखाया और गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़ जैसे जिलों में भाजपा की हालत नाजुक कर दी, लेकिन अचानक से भाजपा से फिर गठबंधन से पब्लिक जो सुभासपा के साथ थी वो खुद को ठगा सा महसूस कर रही है।
भाजपा ने नहीं खोले हैं पत्ते
भारतीय जनता पार्टी के एनडीए गठबंधन में दोबारा ओमप्रकाश राजभर आये तो यूपी की राजनीति में हलचल मच गयी। भाजपा के कई नेताओं के राजभर को दिए बयान और राजभर के भाजपा को लेकर दिए गए बयान चलने शुरू हुए थे। इसमें सबसे चर्चित रहा वाराणसी के शिवपुर विधानसभा के विधायक और कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर का बयान जिसमें उन्होंने ओमप्रकश राजभर को असलम बताया था और कहा था कि सुभासपा की छड़ी सहारा ढूंढ रही पर भाजपा में कोई वैकेंसी नहीं। भाजपा ने 2019 के चुनाव परिणामों कोदेखते हुए यह गठबंधन किया है क्योंकि पिछले चुनाव में बीजेपी को पूर्वांचल की 26 में से 6 सीटों में करारी हार मिली थी। इसमें घोसी और आजमगढ़ की सीट शामिल थी। इन सीटों पर राजभर वोटों का वर्चस्व ही शायद भाजपा को ओमप्रकाश को साथ लाने के लिए मजबूर हुआ। इसके साथ है जहूराबाद के विधायक ओपी राजभर के कैबिनेट मिनिस्टर बनने की चर्चा शुरू हुई थी पर भाजपा ने अभी अपने कोई पत्ते नहीं खोले हैं।