संवाददाता कार्तिकेय पाण्डेय
चकिया-जब व्यक्ति सत्संग की गंगा में आता है तो अपने आप वह अधर्म को छोड़कर धर्म को अपना लेता है। संसार में रहकर भगवान से प्रेम करना चाहिए और प्रेम करने के लिए सत्संग करना जरूरी है। व्यक्ति को भगवान की उपासना में कोई दाग नहीं लगना चाहिए बल्कि उनकी उपासना भाव पूर्वक करना चाहिए। मनुष्य का अपने जीवन में किए हुए धर्म, कीर्ति और कर्म उसके जीने के साथ और मरने के बाद भी रहता है। उक्त बातें काशी से पधारी कथा वाचिका मानस मयूरी शालिनी त्रिपाठी ने राम कथा के आठवीं निशा पर श्रोताओं को रसपान कराते हुए कहीं।
उन्होंने कहा कि मनुष्य अगर गंगा में स्नान कर ले तो उसका पाप समाप्त हो जाएगा लेकिन उसके द्वारा की गई पाप वृत्ति कभी नहीं समाप्त होगी। क्योंकि व्यक्ति को पाप और उसके द्वारा किए गए कुकर्म अवश्य ही भोगना पड़ता है।कहा कि भगवान से कभी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार का मोह नहीं करना चाहिए बल्कि ईश्वर से हमेशा प्रेम करना चाहिए अगर संसार में कुछ भी सत्य है तो वही परमात्मा है। क्योंकि आज के समय के लोगों का भक्ति और प्रेम केवल प्रदर्शन के लिए होता है जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए। कहा कि जो पूरे विश्व को आराम दे उसी का नाम राम है, और आराम की शरण में ही हमेशा व्यक्ति को राम के नाम का जाप करना चाहिए। कथा सुनने से जिस व्यक्ति का मन कभी नहीं भरता है ऐसे व्यक्ति के मन में हमेशा भगवान का वास होता है। उन्होंने कहा कि जहां भगवान की भक्ति नहीं है जहां भगवान से प्रेम नहीं है, वह घर शमशान के समान है और उसे घर में रहने वाले लोग भूतों के समान हैं। कथा के आठवीं निशा पर उन्होंने श्रोताओं को केवट,और राजा दशरथ के मृत्यु, और भारत का राजगद्दी से इनकार के प्रसंग पर विस्तृत रूप से चर्चा की।
इस दौरान कार्यक्रम में विधायक कैलाश खरवार, डॉ गीता शुक्ला, प्रतिभा त्रिपाठी, डॉ महेंद्र त्रिपाठी,विजयानंद द्विवेदी, रामकिंकर राय, अवध बिहारी मिश्रा अरविंद पांडेय, राम अवध पांडे, रामचंद्र तिवारी, शर्मानंद पांडेय, विकास पांडेय, प्रमोद कुशवाहा, रवि गुप्ता, सहित तमाम लोग मौजूद रहे।