संवाददाता कार्तिकेय पाण्डेय
चकिया- पद और प्रतिष्ठा से मनुष्य को भगवान नहीं मिलते हैं। उनमें श्रद्धाभाव से याद करने से भगवान मिलते हैं।और भगवान से ज्यादा उनके इष्ट की भक्ति जरूरी होता है। भगवान की कथा रूपी गंगा ही व्यक्ति के आचरण रूपी गंगा है। संसार में परमात्मा से बड़ा कोई है तो केवल वह एक मां ही होती है। उक्त बातें काशी से पधारी कथावाचिका मानस मयूरी शालिनी त्रिपाठी ने शिव-पार्वती विवाह के प्रसंग की कथा सुनाई, जिसे सुनकर श्रोता हर्षित हो उठे।
उन्होंने कहा कि जब शिव और पार्वती का विवाह होने वाला था तो एक बड़ी सुंदर घटना हुई। ऐसा विवाह इससे पहले कभी नहीं हुआ था। शिव दुनिया के सबसे तेजस्वी प्राणी थे। एक-दूसरे प्राणी को अपने जीवन का हिस्सा बनाने वाले थे, उनकी शादी में बड़े से बड़े और छोटे से छोटे लोग सम्मिलित हुए। सभी देवता तो वहां मौजूद थे ही, असुर भी वहां पहुंचे। आमतौर पर जहां देवता जाते थे, वहां असुर जाने से मना कर देते थे और जहां कहीं भी असुर जाते थे, वहां देवता नहीं जाते थे, क्योंकि उनकी आपस में बिल्कुल नहीं बनती थी पर यह शिव का विवाह था, जिसमें सभी लोगों ने अपने सारे झगड़े भुलाकर एक साथ आने का मन बनाया। शिव पशुपति का मतलब बताते हुए कहा कि इसका मतलब सभी देशों के देवता भी हैं। इसलिए सभी जानवर, कीड़े, मकोड़े और सारे जीव उनके विवाह में शामिल हुए। यहां तक कि भूत, पिशाच और विक्षिप्त लोग भी बराती बनकर पहुंचे। यह एक शाही शादी थी, एक राजकुमारी की शादी हो रही थी। विवाह का ये प्रसंग सुनकर सभी श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे। कार्यक्रम का शुभारंभ समाजसेविका डॉ गीता शुक्ला ने दीप प्रज्वलित कर किया।
इस दौरान मैक्सवेल हास्पिटल के संचालन कृष्णानंद पाण्डेय, विजय आनंद द्विवेदी, रामकिंकर राय, अवध बिहारी मिश्रा, स्वामी कार्तिक द्विवेदी, विरेन्द्र नाथ पांडेय, कैलाश प्रसाद जायसवाल,सूर्य प्रकाश केशरी,सविता देवी,ममता देवी,आरती जायसवाल,किरन देवी सहित तमाम लोग मौजूद रहे।